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दिल में क्या क्या हवस-ए-दीद बढ़ाई न गई | शाही शायरी
dil mein kya kya hawas-e-did baDhai na gai

ग़ज़ल

दिल में क्या क्या हवस-ए-दीद बढ़ाई न गई

हसरत मोहानी

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दिल में क्या क्या हवस-ए-दीद बढ़ाई न गई
रू-ब-रू उन के मगर आँख उठाई न गई

हम रज़ा-शेवा हैं तावील-ए-सितम ख़ुद कर लें
क्या हुआ उन से अगर बात बनाई न गई

ये भी आदाब-ए-मोहब्बत ने गवारा न किया
उन की तस्वीर भी आँखों से लगाई न गई

आह वो आँख जो हर सम्त रही साइक़ा-पाश
वो जो मुझ से किसी उनवान मिलाई न गई

हम से पूछा न गया नाम-ओ-निशाँ भी उन का
जुस्तुजू की कोई तम्हीद उठाई न गई

दिल को था हौसला-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना सो उन्हें
सरगुज़िश्त-ए-शब-ए-हिज्राँ भी सुनाई न गई

ग़म-ए-दूरी ने कशाकश तो बहुत की लेकिन
याद उन की दिल-ए-'हसरत' से भुलाई न गई