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दिल में किसी ख़लिश का गुज़र चाहता हूँ मैं | शाही शायरी
dil mein kisi KHalish ka guzar chahta hun main

ग़ज़ल

दिल में किसी ख़लिश का गुज़र चाहता हूँ मैं

शकील बदायुनी

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दिल में किसी ख़लिश का गुज़र चाहता हूँ मैं
जैसी भी हो बस एक नज़र चाहता हूँ मैं

ख़म हो के फिर न उठ्ठे वो सर चाहता हूँ मैं
उठ कर जो ख़म न हो वो नज़र चाहता हूँ मैं

होते ही तज़्किरा कोई आ जाए रू-ब-रू
इतना बुलंद ज़ौक़-ए-नज़र चाहता हूँ मैं

मेरा सुकून शौक़ है सब कुछ मिरे लिए
नालों को बे-नियाज़ असर चाहता हूँ मैं

क्या पूछते हो मक़्सद-ए-इज़हार-ए-आरज़ू
शरह-ए-वफ़ा पे नक़्द-ओ-नज़र चाहता हूँ मैं

पैहम ग़म-ए-फ़िराक़ से घबरा गया है दिल
कुछ इम्तियाज़-ए-शाम-ओ-सहर चाहता हूँ मैं

जी चाहता है आग लगा दूँ नक़ाब में
जल्वों से इंतिक़ाम-ए-नज़र चाहता हूँ मैं

मुहताज-ए-राहबर हूँ जहाँ ख़िज़्र तक 'शकील'
ऐसी भी कोई राहगुज़र चाहता हूँ मैं