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दिल में ख़ुशबू सी उतर जाती है सीने में नूर सा ढल जाता है | शाही शायरी
dil mein KHushbu si utar jati hai sine mein nur sa Dhal jata hai

ग़ज़ल

दिल में ख़ुशबू सी उतर जाती है सीने में नूर सा ढल जाता है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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दिल में ख़ुशबू सी उतर जाती है सीने में नूर सा ढल जाता है
ख़्वाब इक देख रहा होता हूँ फिर ये मंज़र भी बदल जाता है

चाहता हूँ कि मैं उठ कर देखूँ छत से आकाश का मंज़र देखूँ
अभी छत तक ही पहुँचती है आँख पाँव ज़ीने से फिसल जाता है

ख़्वाब की गुम-शुदा ताबीर हूँ मैं इक अजब ज़ब्त की तस्वीर हूँ मैं
फिर भी इन बर्फ़ सी आँखों में कभी कोई ग़म है कि पिघल जाता है

इक धुआँ जो न बिखरने दे मुझे ख़ाक में भी न उतरने दे मुझे
जब सियाही की तरफ़ बढ़ता हूँ इक दिया सा कहीं जल जाता है

राह चलता हूँ इरादों के साथ शौक़ के साथ मुरादों के साथ
पाँव होते हैं क़रीब-ए-मंज़िल वक़्त हाथों से निकल जाता है