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दिल में जिन्हें उतारते दिल से वही उतर गए | शाही शायरी
dil mein jinhen utarte dil se wahi utar gae

ग़ज़ल

दिल में जिन्हें उतारते दिल से वही उतर गए

मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी

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दिल में जिन्हें उतारते दिल से वही उतर गए
जिस्म को चूमते रहे रूह पे वार कर गए

फिर सर-ए-शाख़-ए-आरज़ू खिल के महक उठी कली
दर्द की फ़स्ल हो चुकी दाग़ के दिन गुज़र गए

सारे मलामातों के तीर जिन का हदफ़ बने थे हम
अपने लिए वो तीर भी काम दुआ का कर गए

आज तो तेरी याद भी मरहम-ए-दिल न हो सकी
ज़ख़्म ज़रूर दब गए दाग़ मगर उभर गए

दश्त-ए-तवहहुमात में अपनी सदा है और हम
हुस्न-ए-यक़ीं के क़ाफ़िले किस से कहें किधर गए

वक़्त के क़ाफ़िले में जब कोई न हम-सफ़र मिला
बन के ग़ुबार-ए-रहगुज़र दश्त में हम बिखर गए