दिल में जब भी कभी दुनिया से मलाल आता है
कितने ही ज़ोहरा-जबीनों का ख़याल आता है
शम्अ' जलती है तो परवानों का आता है ख़याल
और बुझती है तो बुझने पे मलाल आता है
नोक-ए-हर-ख़ार नज़र आती है क्यूँ तिश्ना-ए-ख़ूँ
दश्त-ए-पुर-ख़ार में क्या कोई ग़ज़ाल आता है
ऐन हिज्राँ में भी मिलती है कभी लज़्ज़त-ए-वस्ल
ऐन लज़्ज़त में भी लज़्ज़त पे ज़वाल आता है

ग़ज़ल
दिल में जब भी कभी दुनिया से मलाल आता है
ख़ुर्शीदुल इस्लाम