EN اردو
दिल में इक शोर उठाते हैं चले जाते हैं | शाही शायरी
dil mein ek shor uThate hain chale jate hain

ग़ज़ल

दिल में इक शोर उठाते हैं चले जाते हैं

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

;

दिल में इक शोर उठाते हैं चले जाते हैं
आप जज़्बात जगाते हैं चले जाते हैं

रोज़ जलता है सर-ए-शाम उमीदों का चराग़
दामन-ए-लैल बुझाते हैं चले जाते हैं

वक़्त-ए-रुख़्सत तो क़यामत का समाँ होता है
ग़म को सीने से लगाते हैं चले जाते हैं

हम तो फिरते हैं मोहब्बत का ख़ज़ाना ले कर
राह नफ़रत में लुटाते हैं चले जाते हैं

चंद लम्हों की रिफ़ाक़त में कई ख़्वाब हसीं
लाला-ओ-गुल को दिखाते हैं चले जाते हैं

ख़ुश्क होंटों को मिरे झूटा तबस्सुम दे कर
फिर से आँखों को रुलाते हैं चले जाते हैं

कौन करता है अदा हक़्क़-ए-मरासिम 'शम्सी'
लोग बस रस्म निभाते हैं चले जाते हैं