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दिल में हसरत कोई बची ही नहीं | शाही शायरी
dil mein hasrat koi bachi hi nahin

ग़ज़ल

दिल में हसरत कोई बची ही नहीं

अज़्म शाकरी

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दिल में हसरत कोई बची ही नहीं
आग ऐसी लगी बुझी ही नहीं

उस ने जब ख़ुद को बे-नक़ाब किया
फिर किसी की नज़र उठी ही नहीं

जैसा इस बार खुल के रोए हम
ऐसी बारिश कभी हुई ही नहीं

ज़िंदगी को गले लगाते क्या
ज़िंदगी उम्र-भर मिली ही नहीं

मुंतज़िर कब से चाँद छत पर है
कोई खिड़की अभी खुली ही नहीं

मैं जिसे अपनी ज़िंदगी समझा
सच तो ये है वो मेरी थी ही नहीं