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दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत | शाही शायरी
dil mein har-chand aarzu thi bahut

ग़ज़ल

दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत

बासिर सुल्तान काज़मी

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दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत
काम थोड़ा था गुफ़्तुगू थी बहुत

संग-ए-मंज़िल ये छेड़ता है मुझे
आ तुझे मेरी जुस्तुजू थी बहुत

ऐ हवस! देख दाग़ दाग़ जिगर
तू भी मुश्ताक़-ए-रंग-ओ-बू थी बहुत

कौन है जिस से मैं नहीं उलझा
गो मिरी तब्अ सुल्ह-जू थी बहुत

बढ़ गई तुझ से मिल के तन्हाई
रूह जूया-ए-हम-सुबू थी बहुत

इक तिरी ही निगाह में न जचे
शहर में वर्ना आबरू थी बहुत