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दिल में औरों के लिए कीना-ओ-कद रखते हैं | शाही शायरी
dil mein auron ke liye kina-o-kad rakhte hain

ग़ज़ल

दिल में औरों के लिए कीना-ओ-कद रखते हैं

सलीम शुजाअ अंसारी

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दिल में औरों के लिए कीना-ओ-कद रखते हैं
लोग इख़्लास के पर्दे में हसद रखते हैं

आप से हाथ मिलाते हुए डर लगता है
आप तो प्यार के रिश्तों में भी हद रखते हैं

ये ज़रूरी नहीं दिल उन के हों हक़ से मा'मूर
वो जो चेहरों पे इबादत की सनद रखते हैं

क्या पता कब किसी रिश्ते का भरोसा टूटे
ऐसे लोगों से न मिलिए जो हसद रखते हैं

दफ़्न हो जाए न एहसास-ए-मोहब्बत दिल में
अब कहाँ दिल का ख़याल अहल-ए-ख़िरद रखते हैं

कौन होता है मुसीबत में किसी का 'सालिम'
हम अबस आप से उम्मीद-ए-मदद रखते हैं