दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है
पैग़ाम ब-अंदाज़-ए-पैग़ाम नहीं है
ऐ जान-ए-गिराँ सैर तिरा रहबर-ओ-रहज़न
है कौन अगर वक़्त-सुबुक-गाम नहीं है
जो तेरे दयार-ए-रुख़-ओ-काकुल में न गुज़रे
वो सुब्ह नहीं है वो मिरी शाम नहीं है
इस पुर्सिश-ए-हालात के अंदाज़ के क़ुर्बां
किस तरह कहूँ मैं मुझे आराम नहीं है
क्या बात है ऐ तल्ख़ी-ए-आज़ार-ए-मोहब्बत
फ़िहरिस्त-ए-शहीदाँ में मिरा नाम नहीं है
मय-ख़ाने में और शोरिश-ए-अय्याम दर आए
अफ़्सोस कि हाथों में मिरे जाम नहीं है
अक्सर लब-ए-शाइ'र से जो सुनता है ज़माना
वो ज़ीस्त की आवाज़ है इल्हाम नहीं है
ऐ मस्त-ए-मय-शौक़ सँभाल अपने सुबू को
दुनिया है ये ख़ुम-ख़ाना-ए-ख़य्याम नहीं है
इक तुर्फ़ा तमाशा है 'नज़र' तेरी तबीअ'त
शाइ'र भी है और शहर में बदनाम नहीं है
ग़ज़ल
दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है
नज़र हैदराबादी