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दिल लगाया है तो नफ़रत भी नहीं कर सकते | शाही शायरी
dil lagaya hai to nafrat bhi nahin kar sakte

ग़ज़ल

दिल लगाया है तो नफ़रत भी नहीं कर सकते

अब्बास दाना

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दिल लगाया है तो नफ़रत भी नहीं कर सकते
अब तिरे शहर से हिजरत भी नहीं कर सकते

आख़री वक़्त में जीने का सहारा है यही
तेरी यादों से बग़ावत भी नहीं कर सकते

झूट बोले तो जहाँ ने हमें फ़नकारी कहा
अब तो सच कहने की हिम्मत भी नहीं कर सकते

इस नए दौर ने माँ-बाप का हक़ छीन लिया
अपने बच्चों को नसीहत भी नहीं कर सकते

हम उजालों के पयम्बर तो नहीं हैं लेकिन
क्या चराग़ों की हिफ़ाज़त भी नहीं कर सकते

क़द्र इंसान की घट घट के यहाँ तक पहुँची
अब तो क़ीमत में रिआ'यत भी नहीं कर सकते

फ़न की ताज़ीम में मर जाओगे भूके 'दाना'
तुम तो ग़ज़लों की तिजारत भी नहीं कर सकते