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दिल लगाना चाहिए चल कर किसी हैवान से | शाही शायरी
dil lagana chahiye chal kar kisi haiwan se

ग़ज़ल

दिल लगाना चाहिए चल कर किसी हैवान से

अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

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दिल लगाना चाहिए चल कर किसी हैवान से
दर्जहा बेहतर हैं ये इस दौर के इंसान से

बरकतें जो उठ गई हैं आज दस्तर-ख़्वान से
मेज़बाँ डरने लगे हैं आमद-ए-मेहमान से

फ़स्ल बोई जाएगी सुनते हैं अब मिर्रीख़ पर
दूरियाँ यूँ बढ़ रही हैं खेत से खलियान से

कर लिया है सब ने जाएज़ हर अमल इस खेल में
गर्म रक्खेंगे सियासत झूट से बोहतान से

सर्द होगी एक दिन ये आतिश-ए-नमरूद भी
बारहा गुज़रे हैं हम इस कर्ब के तूफ़ान से

वक़्त की रफ़्तार ने सब का बदल डाला मिज़ाज
शाएरी भी हो रही है अब नए उन्वान से

मुल्क से रिश्ता हमारा है कुछ ऐसा ही 'अतीक़'
जिस्म का जैसे हुआ करता है रिश्ता जान से