दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
फूल को खिलने से मतलब है चमन कोई भी हो
सूरत-ए-हालात ही पर बात करनी है अगर
फिर मुख़ातब हो कोई भी अंजुमन कोई भी हो
है वही ला-हासिली दस्त-ए-हुनर की मुंतज़िर
आख़िरश सर फोड़ता है कोहकन कोई भी हो
शाएरी में आज भी मिलता है 'नासिर' का निशाँ
ढूँडते हैं हम उसे बज़्म-ए-सुख़न कोई भी हो
आदतें और हाजतें 'बासिर' बदलती हैं कहाँ
रक़्स बिन रहता नहीं ताऊस बन कोई भी हो
ग़ज़ल
दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
बासिर सुल्तान काज़मी