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दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो | शाही शायरी
dil laga lete hain ahl-e-dil watan koi bhi ho

ग़ज़ल

दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो

बासिर सुल्तान काज़मी

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दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
फूल को खिलने से मतलब है चमन कोई भी हो

सूरत-ए-हालात ही पर बात करनी है अगर
फिर मुख़ातब हो कोई भी अंजुमन कोई भी हो

है वही ला-हासिली दस्त-ए-हुनर की मुंतज़िर
आख़िरश सर फोड़ता है कोहकन कोई भी हो

शाएरी में आज भी मिलता है 'नासिर' का निशाँ
ढूँडते हैं हम उसे बज़्म-ए-सुख़न कोई भी हो

आदतें और हाजतें 'बासिर' बदलती हैं कहाँ
रक़्स बिन रहता नहीं ताऊस बन कोई भी हो