दिल को उस शोख़ के कूचे में धरे आते हैं
शीशा ख़ाली किए और अश्क भरे आते हैं
सर-कशी दिल ने सियह चश्म से क्या की है कि जो
फ़ौज-ए-ग़म्ज़ा की बंधे उस पे परे आते हैं
दिल जो तू चाहे तो जा बज़्म में उस की हम तो
देख उस सूरत-ए-मज्लिस को डरे आते हैं
कुश्ता-ए-ज़हर-ए-ग़म-ए-हिज्र नहीं तू तो 'हसन'
लख़्त-ए-दिल क्यूँ तिरे अश्कों में हरे आते हैं
ग़ज़ल
दिल को उस शोख़ के कूचे में धरे आते हैं
मीर हसन