दिल को तर्ज़-ए-निगह-ए-यार जताते आए
तीर भी आए तो बे-पर की उड़ाते आए
बादशाहों का है दरबार दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ
सैकड़ों जाते गए सैकड़ों आते आए
छुप के भी आए मिरे घर तो वो दरबानों को
अपनी पाज़ेब की झंकार सुनाते आए
रोज़-ए-महशर जो बुलाए गए दीवाना-ए-ज़ुल्फ़
बेड़ियाँ पहने हुए शोर मचाते आए
क्या कहेंगे कोई महशर में जो पूछेगा 'अमीर'
क्यूँ न बिगड़ी हुई बातों को बनाते आए
ग़ज़ल
दिल को तर्ज़-ए-निगह-ए-यार जताते आए
अमीर मीनाई