दिल को फिर उम्मीद गरमाने लगी
फिर मुझे दुनिया नज़र आने लगी
दिल पे डाली है किसी ने फिर निगाह
साँस फिर आने लगी जाने लगी
नक़्श फिर जमने लगा तदबीर का
अक़्ल फिर कुछ दिल को समझाने लगी
नज़्अ' में आने लगी फिर किस की याद
आरज़ू-ए-ज़ीस्त तड़पाने लगी
हो चला है फिर किसी का इंतिज़ार
खिंच के जान आँखों में फिर आने लगी
रंज भी आख़िर को राहत बन गया
शब हुजूम-ए-ग़म से नींद आने लगी
फिर वही बेताबी-ए-दिल है 'जिगर'
फिर किसी की याद तड़पाने लगी
ग़ज़ल
दिल को फिर उम्मीद गरमाने लगी
जिगर बरेलवी