दिल को पैहम दर्द से दो-चार रहने दीजिए
कुछ तो क़ाएम इश्क़ का मेआ'र रहने दीजिए
दिल की दुनिया ग़म सरापा ग़म की दुनिया क्या कहूँ
काएनात-ए-दिल को ग़म-आसार रहने दीजिए
किस तरफ़ जाए ग़रीब अदबार का मारा हुआ
इस मुसाफ़िर को पस-ए-दीवार रहने दीजिए
आ रही है साज़-ए-दिल के तार में लर्ज़िश अभी
अपनी नज़रों को शरीक-ए-कार रहने दीजिए
सारी दुनिया हो चुकी बेगाना-ए-होश-ओ-ख़िरद
कम-से-कम 'सादिक़' को तो होश्यार रहने दीजिए
ग़ज़ल
दिल को पैहम दर्द से दो-चार रहने दीजिए
सादिक़ इंदौरी