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दिल को नसीब सोज़-ए-ग़म-ए-गुलसिताँ कहाँ | शाही शायरी
dil ko nasib soz-e-gham-e-gulsitan kahan

ग़ज़ल

दिल को नसीब सोज़-ए-ग़म-ए-गुलसिताँ कहाँ

शांति लाल मल्होत्रा

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दिल को नसीब सोज़-ए-ग़म-ए-गुलसिताँ कहाँ
होता तो आज होता ये दर्द-ए-निहाँ कहाँ

ज़ौक़-ए-बहार ही है न ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ मुझे
गुम-सुम है अपने हाल में तब-ए-रवाँ कहाँ

जिस से गुलों के ज़ब्त का दामन हो तार तार
है अंदलीब तेरा वो ज़ौक़-ए-फ़ुग़ाँ कहाँ

हो जाए अब न ख़त्म फ़साना फ़िराक़ का
हैं नूर-ए-सुब्ह रात की नैरंगियाँ कहाँ

ले जाएगी सबा मिरा पैग़ाम तू मगर
होगा सुबुक हवा से मिज़ाज-ए-गराँ कहाँ

ले आए तोड़ तोड़ के तारे फ़लक से हम
लेकिन नसीब क़ुव्वत-ए-हुस्न-ए-बयाँ कहाँ

'शादाँ' न ढूँढ अर्सा-ए-ग़ुर्बत में आसरे
इस में चमन की अर्ज़िश-ए-अर्ज़-ओ-समाँ कहाँ