दिल को मिटा के दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे
ऐ इश्क़ तेरी ख़ैर हो ये क्या दिया मुझे
महशर में बात भी न ज़बाँ से निकल सकी
क्या झुक के उस निगाह ने समझा दिया मुझे
मैं और आरज़ू-ए-विसाल-ए-परी-रुख़ाँ
इस इश्क़-ए-सादा-लौह ने बहका दिया मुझे
हर बार यास हिज्र में दिल की हुई शरीक
हर मर्तबा उम्मीद ने धोका दिया मुझे
अल्लाह रे तेग़-ए-इश्क़ की बरहम-मज़ाहियाँ
मेरे ही ख़ून-ए-शौक़ में नहला दिया मुझे
ख़ुश हूँ कि हुस्न-ए-यार ने ख़ुद अपने हाथ से
इक दिल-फ़रेब दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे
दुनिया से खो चुका है मिरा जोश-ए-इंतिज़ार
आवाज़-ए-पाए-ए-यार ने चौंका दिया मुझे
दावा किया था ज़ब्त-ए-मोहब्बत का ऐ 'जिगर'
ज़ालिम ने बात बात पे तड़पा दिया मुझे
ग़ज़ल
दिल को मिटा के दाग़-ए-तमन्ना दिया मुझे
जिगर मुरादाबादी