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दिल को मिलता नहीं क़रार कहीं | शाही शायरी
dil ko milta nahin qarar kahin

ग़ज़ल

दिल को मिलता नहीं क़रार कहीं

जावेद कमाल रामपुरी

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दिल को मिलता नहीं क़रार कहीं
ग़म भी होता है साज़गार कहीं

जब घटाएँ उमड के आती हैं
बैठ जाते हैं बादा-ख़्वार कहीं

मौसम-ए-गुल में अब्र-ए-बाराँ में
दिल पे रहता है इख़्तियार कहीं

तेरी ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म के निसार
गुम न हो जाए रहगुज़ार कहीं

बू-ए-गुल के हुजूम-ए-रक़्साँ में
पर ठहरती नहीं बहार कहीं