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दिल को मामूर करो जज़्ब-ओ-असर से पहले | शाही शायरी
dil ko mamur karo jazb-o-asar se pahle

ग़ज़ल

दिल को मामूर करो जज़्ब-ओ-असर से पहले

रज़ा जौनपुरी

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दिल को मामूर करो जज़्ब-ओ-असर से पहले
नक़्श-ए-मंज़िल चमक उट्ठेंगे सफ़र से पहले

लम्हा-ए-फ़िक्र से साक़ी की मुरव्वत के लिए
बज़्म-ए-रिंदाँ में चले जाम किधर से पहले

गर्मी-ए-इश्क़ ने बख़्शा है ये आलम वर्ना
हुस्न बेदार न था मेरी नज़र से पहले

रिफ़अतें कौन-ओ-मकाँ की भी सिमट आती हैं
किस को मा'लूम था ये सज्दा-ए-दर से पहले

दामन-ए-मिज़्गाँ के शब-ताब सितारों की क़सम
इक हसीं सुब्ह का आलम था सहर से पहले

लब भी बेताब हैं इज़हार-ए-हक़ीक़त के लिए
दास्ताँ सुन लो मगर दीदा-ए-तर से पहले

कहकशाँ-साज़ किया क़दमों को मैं ने वर्ना
कौन वाक़िफ़ था तिरी राहगुज़र से पहले

लज़्ज़त दर्द फ़रिश्तों को 'रज़ा' क्या मा'लूम
न हुआ इश्क़ का आज़ार बशर से पहले