दिल को ले जी को अब लुभाते हो
इस लिए बन बना के आते हो
इश्क़ बिन हम तो कुछ गुनह न किया
बे-गुनाहों को क्यूँ सताते हो
कोई ऐसा मोआ'मला न सुना
न तो आते हो ना बुलाते हो
बावजूद इस जफ़ा के प्यारे तुम
किस क़दर मेरे मन को भाते हो
हम तो अव्वल से मस्त हैं 'आगाह'
फिर तराने ये क्यूँ सुनाते हो

ग़ज़ल
दिल को ले जी को अब लुभाते हो
बाक़र आगाह वेलोरी