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दिल को जब हासिल सफ़ाई हो गई | शाही शायरी
dil ko jab hasil safai ho gai

ग़ज़ल

दिल को जब हासिल सफ़ाई हो गई

दत्तात्रिया कैफ़ी

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दिल को जब हासिल सफ़ाई हो गई
जल्वा-गर बुत में ख़ुदाई हो गई

ज़िक्र वस्ल आ आ के लब पर रह गया
ये भी क्या आशिक़ की आई हो गई

वार क्या शैतान का अब चल सके
वो भी इक गंदुम-नुमाई हो गई

नूर हर पत्थर में पाया तूर का
चश्म-ए-दिल को रौशनाई हो गई

बीच से पर्दा-दुई का उठ गया
तो ख़ुदी ख़ुद फिर ख़ुदाई हो गई