दिल को दुनिया का है सफ़र दरपेश
और चारों तरफ़ है घर दरपेश
है ये आलम अजीब और यहाँ
माजरा है अजीब-तर दरपेश
दो जहाँ से गुज़र गया फिर भी
मैं रहा ख़ुद को उम्र भर दरपेश
अब मैं कू-ए-अबस शिताब चलूँ
कई इक काम हैं उधर दरपेश
उस के दीदार की उम्मीद कहाँ
जब कि है दीद को नज़र दरपेश
अब मिरी जान बच गई यानी
एक क़ातिल की है सिपर दरपेश
किस तरह कूच पर कमर बाँधूँ
एक रहज़न की है कमर दरपेश
ख़ल्वत-ए-नाज़ और आईना
ख़ुद-निगर को है ख़ुद-निगर दरपेश
ग़ज़ल
दिल को दुनिया का है सफ़र दरपेश
जौन एलिया