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दिल को आमादा-ए-वफ़ा रखिए | शाही शायरी
dil ko aamada-e-wafa rakhiye

ग़ज़ल

दिल को आमादा-ए-वफ़ा रखिए

हसन अख्तर जलील

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दिल को आमादा-ए-वफ़ा रखिए
आँधियाँ हैं दिया जला रखिए

कितनी सदियों की बर्फ़ पिघली है
सैल का रास्ता खुला रखिए

बन के लावा बहेगा जोश-ए-नुमू
अब न इस आग को दबा रखिए

ख़ून अहल-ए-नज़र से गुलगूँ है
ख़ाक का नाम कीमिया रखिए

जो सहर की किरन से फूटे हैं
उन अंधेरों का नाम क्या रखिए

जलती शामों की इस चिता पे 'जलील'
इक नई सुब्ह की बिना रखिए