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दिल कसू से तो क्या लगाना था | शाही शायरी
dil kasu se to kya lagana tha

ग़ज़ल

दिल कसू से तो क्या लगाना था

मुंतज़िर लखनवी

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दिल कसू से तो क्या लगाना था
हम को मंज़ूर जी से जाना था

आस्ताँ था वो आस्ताना-ए-इश्क़
काट कर सर जहाँ चढ़ाना था

दीद को तेरे आए थे हम याँ
ज़िंदगी का फ़क़त बहाना था

निकले वो आह अपने दुश्मन-ए-जाँ
हम ने जिन जिन को दोस्त जाना था

जिस ज़माने में हम हुए थे ख़ल्क़
हाए वो क्या बुरा ज़माना था

क्यूँ दिया उस परी को दिल तू ने
क्या तू ऐ 'मुंतज़िर' दिवाना था