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दिल की सूरत तिरे सीने में धड़कता हूँ मैं | शाही शायरी
dil ki surat tere sine mein dhaDakta hun main

ग़ज़ल

दिल की सूरत तिरे सीने में धड़कता हूँ मैं

क़ैस रामपुरी

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दिल की सूरत तिरे सीने में धड़कता हूँ मैं
हाँ ब-ज़ाहिर तिरे हाथों का खिलौना हूँ मैं

अब जहाँ चाँद लब-ए-बाम उभरता ही नहीं
जाने क्यूँ फिर उन्हीं गलियों से गुज़रता हूँ मैं

कितना नादान था मैं डूब गया जल भी गया
वो बहुत कहता रहा आग का दरिया हूँ मैं

आरज़ू थी कि गुलाबों के दिलों में रहता
ये सज़ा पाई कि काँटों का बिछौना हूँ मैं

मेरे पास आ के कोई तिश्ना-लबी भूल गया
मैं तो समझा था कि तपता हुआ सहरा हूँ मैं