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दिल की जो आग थी कम उस को भी होने न दिया | शाही शायरी
dil ki jo aag thi kam usko bhi hone na diya

ग़ज़ल

दिल की जो आग थी कम उस को भी होने न दिया

उमा शंकर चित्रवंशी बाज़ल

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दिल की जो आग थी कम उस को भी होने न दिया
हम तो रोते थे मगर आप ने रोने न दिया

शम्अ क्यूँ पर्दा-ए-फ़ानूस में छुप जाती है
उस ने परवाने को क़ुर्बान भी होने न दिया

याद-दिलबर में कभी ऐ दिल-ए-मुज़्तर तू ने
हम को चुप-चाप कहीं बैठ के रोने न दिया

आशियाँ का तो कोई ज़िक्र है क्या ऐ सय्याद
जमा तिनकों को कभी बर्क़ ने होने न दिया

आस्तीं आँखों पर उस शोख़ ने रख दी 'बाज़ल'
रो रहा था मुझे किस वास्ते रोने न दिया