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दिल की इमारत झूटे जज़्बों पर ता'मीर नहीं करना | शाही शायरी
dil ki imarat jhuTe jazbon par tamir nahin karna

ग़ज़ल

दिल की इमारत झूटे जज़्बों पर ता'मीर नहीं करना

रशीद अयाँ

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दिल की इमारत झूटे जज़्बों पर ता'मीर नहीं करना
ख़्वाब अधूरा देखो तो कोई ताबीर नहीं करना

फूल खिलें तो हवा में ख़ुशबू हो ही जाती है तहलील
दिल की बातें समझो पर उन की तफ़्सीर नहीं करना

माँ कहती है घुटती जलती रहना पी लेना आँसू
शेरों में भी बेटी अपना ग़म तहरीर नहीं करना

ना साहब हम से मत माँगो अहद-ए-वफ़ा इन बातों पर
जब्र-ओ-सितम सहना लेकिन कोई तदबीर नहीं करना

जब्र के अँधियारों में रहना ज़ुल्म का सहना है तक़्सीर
देखो मेरी जान 'अयाँ' तुम ये तक़्सीर नहीं करना