दिल की दिल ने न कही यूँ तो कई बार मिले
हम शनासा थे मगर सूरत-ए-अग़्यार मिले
उस से कहना कि न अब और वो इतरा के चले
दोस्तो तुम को अगर यार-ए-तरह-दार मिले
बेवफ़ा हम हैं तो ऐ जान-ए-वफ़ा यूँही सही
ढूँड लेना जो तुम्हें कोई वफ़ादार मिले
हम तो दिल दे के भी दुनिया में अकेले ही रहे
जो हवस कार थे सब उन के तरफ़-दार मिले
दिल की क़ीमत तो मोहब्बत के सिवा कुछ भी न थी
जो मिले सूरत-ए-ज़ेबा के ख़रीदार मिले
हम ने काँटों को भी सीने से लगा रक्खा है
ख़ार भी हम से ब-रंग-ए-गुल-ए-गुलज़ार मिले
दूरियाँ फ़ासले हो जाते हैं तय आख़िर-ए-कार
सर-ए-गुलज़ार जो बिछड़े थे सर-ए-दार मिले
ग़ज़ल
दिल की दिल ने न कही यूँ तो कई बार मिले
जमील मलिक