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दिल की धड़कन उलझ रही है ये कैसी सौग़ात ग़ज़ल की | शाही शायरी
dil ki dhaDkan ulajh rahi hai ye kaisi saughat ghazal ki

ग़ज़ल

दिल की धड़कन उलझ रही है ये कैसी सौग़ात ग़ज़ल की

रख़शां हाशमी

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दिल की धड़कन उलझ रही है ये कैसी सौग़ात ग़ज़ल की
तार-ए-नफ़स पर उँगली रख दी छेड़ के तुम ने बात ग़ज़ल की

उस का चेहरा उस की आँखें एक क़यामत हाए मोहब्बत
तस्वीरें ख़ुद बतलाती हैं सारी तफ़सीलात ग़ज़ल की

वही कहानी दोहराएँगे वही निशानी फिर ढूँडेंगे
आदम और हव्वा से जुड़ी है अस्ल में तलमीहात ग़ज़ल की

सफ़हा-ए-दिल पर मिस्रा-ए-तर की शक्ल में आँसू गिरते हैं
दर्द के बादल छाते हैं तो होती है बरसात ग़ज़ल की

हवा हुए वो दिन कि ग़ज़ल करती थी बस महबूब से बात
वक़्त का मंज़र-नामा बदला बदली तरजीहात ग़ज़ल की

चूल्हे-चौके से बे-ज़ारी फ़िक्र-ए-सुख़न आ'साब पे तारी
जागते सोते राह निहारूँ 'रख़्शाँ' मैं बन रात ग़ज़ल की