दिल की धड़कन अब रग-ए-जाँ के बहुत नज़दीक है
रात बे-आवाज़ बे-अंदाज़ बे-तहरीक है
जम गई हैं तारों की आँखों पे बादल की तहें
डूब जाओ ज़ात के अंदर फ़लक तारीक है
कल के लम्हे आज के लम्हों में मुदग़म हो गए
देखना आँखों में अब जल्वा-नुमा तहरीक है
तुम मिरे कमरे के अंदर झाँकने आए हो क्यूँ
सो रहा हूँ चैन से हूँ ठीक है सब ठीक है
मौत का लम्हा अभी आया अभी जाने को है
चूम लो मिट्टी को अपनी हदिया-ए-तबरीक है
दोस्तो आँखें न खोलो ठंडी साँसें मत भरो
आ गए मंज़िल पे तुम 'असलम' बहुत नज़दीक है
ग़ज़ल
दिल की धड़कन अब रग-ए-जाँ के बहुत नज़दीक है
असलम इमादी