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दिल की दहलीज़ पे दिलबर आया | शाही शायरी
dil ki dahliz pe dilbar aaya

ग़ज़ल

दिल की दहलीज़ पे दिलबर आया

अतयब एजाज़

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दिल की दहलीज़ पे दिलबर आया
प्यास के दर पे समुंदर आया

चलते चलते तिरी ख़ुशबू आई
मैं ये समझा कि तिरा घर आया

धूप में छाँव नुमूदार हुई
कौन आख़िर सर-ए-महशर आया

अस्ल में थी वो हवाई आहट
मैं बड़ी तेज़ी से बाहर आया

थीं ख़ताएँ तो सरासर दिल की
ज़द में आया तो मिरा सर आया

छूट कर तुझ से कहीं जा न मिली
लौट कर फिर तिरे दर पर आया

उस को लौटा दिए सब उस के ख़ुतूत
हाए नादान ये क्या कर आया

यार आया कि न आया 'अतीब'
नामा-ए-यार बराबर आया