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दिल की बिसात पे शाह प्यादे कितनी बार उतारोगे | शाही शायरी
dil ki bisat pe shah payaade kitni bar utaroge

ग़ज़ल

दिल की बिसात पे शाह प्यादे कितनी बार उतारोगे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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दिल की बिसात पे शाह प्यादे कितनी बार उतारोगे
इस बस्ती में सब शातिर हैं तुम हर बाज़ी हारोगे

प्रेम-पुजारी मंदिर मंदिर दिल की कथा क्यूँ गाते हो
बुत सारे पत्थर हैं प्यारे सर पत्थर से मारोगे

दिल में खींच के उस की सूरत आज तो ख़ुश ख़ुश आए हो
कल से उस में रंग भरोगे कल से नक़्श उभारोगे

सारे दिन तो उस की गली में आते जाते गुज़री है
अब बोलो अब रात हुई है कैसे रात गुज़ारोगे

प्यार की आँखें मुँद जाएँगी दिल का दिया बुझ जाएगा
कब तक लहू जलाओगे तुम कब तक काजल पारोगे

जिस को दाता मान के तुम ने भीक लगन की माँगी है
उस ने भी जो सलाम किया तो दामन कहाँ पसारोगे

'बाक़र' साहब महा कवी हो बड़े गुरु कहलाते हो
अपना दुख-सुख भूल गए तो किस का ख़ाल सँवारोगे

कली कली अश्कों की लड़ियाँ फूल फूल ये कोमल गीत
किस की सेज सजाई 'बाक़र' किस का रूप निखारोगे