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दिल की बात न मानी होती इश्क़ किया क्यूँ पीरी में | शाही शायरी
dil ki baat na mani hoti ishq kiya kyun piri mein

ग़ज़ल

दिल की बात न मानी होती इश्क़ किया क्यूँ पीरी में

तौसीफ़ तबस्सुम

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दिल की बात न मानी होती इश्क़ किया क्यूँ पीरी में
अपनी मर्ज़ी भी शामिल है अपनी बे-तौक़ीरी में

दर्द उठा तो रेज़ा दिल का गोश-ए-लब पर आन जमा
ख़ुश हैं कोई नक़्श तो उभरा बारे बे-तस्वीरी में

क़ैद में गुल जो याद आया तो फूल सा दामन चाक किया
और लहू फिर रोए गोया भूले नहीं असीरी में

जाने वाले चले गए पर लम्हा लम्हा उन की याद
दुख-मेले में उँगली थामे साथ चली दिल-गीरी में

तौक़ गले का पाँव की बेड़ी आहन-गर ने काट दिए
अपने आप से बाहर निकले ज़ोर कहाँ ज़ंजीरी में

शुक्र है जितनी उम्र गुज़ारी नान-ओ-नमक की फ़िक्र न थी
हाथ का तकिया ख़ाक का बिस्तर हासिल रहे फ़क़ीरी में