दिल ख़ूँ हुआ है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना के साथ
है मा'नी-ए-बुलंद भी तर्ज़-ए-अदा के साथ
चटका जो दिल तो मिस्ल-ए-गुल-ए-तर बिखर गया
ख़ुश्बू सबा के साथ थी नग़्मा सदा के साथ
ये हाल है चमन में कि अब मिस्ल-ए-बर्ग-ए-ख़ुश्क
आवारा एक उम्र से हैं हम हवा के साथ
ज़ुल्फ़ें उधर खुलीं इधर आँसू उमँड पड़े
हैं सब के अपने अपने रवाबित घटा के साथ
तुम रंग थे तो ख़ू-ए-वफ़ा थी गुलों में थे
ख़ुश्बू बने तो उड़ गए मौज-ए-सबा के साथ
आहट पे कान राह में आँखों बिछी हुई
हम दूर तक चले तिरी आवाज़-ए-पा के साथ
सनकी हवा तो शोरिश-ए-ज़िंदाँ भी बढ़ गई
दिल वज्द में है नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-पा के साथ
है इंतिहा-ए-शौक़ भी बे-राहियोँ का बाब
हम थोड़ी दूर चलते हैं हर रहनुमा के साथ
आख़िर को गर्द-ए-हू के रहे मिस्ल-ए-गर्द-बाद
दो-चार हाथ हम भी उड़े थे हवा के साथ
'बाक़र' तुम्हारा शहर में ज़ामिन बनेगा कौन
कुछ नक़्द भी तो चाहिए जिंस-ए-वफ़ा के साथ
ग़ज़ल
दिल ख़ूँ हुआ है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना के साथ
सज्जाद बाक़र रिज़वी