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दिल-ख़स्तगाँ में दर्द का आज़र कोई तो आए | शाही शायरी
dil-KHastagan mein dard ka aazar koi to aae

ग़ज़ल

दिल-ख़स्तगाँ में दर्द का आज़र कोई तो आए

अज़ीज़ क़ैसी

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दिल-ख़स्तगाँ में दर्द का आज़र कोई तो आए
पत्थर से मेरे ख़्वाब का पैकर कोई तो आए

दरिया भी हो तो कैसे डुबो दें ज़मीन को
पलकों के पार ग़म का समुंदर कोई तो आए

चौखट से हाल पूछा तो बाज़ार से सुना
इक दिन ग़रीब-ख़ाने के अंदर कोई तो आए

जो ज़ख़्म दोस्तों ने दिए हैं वो छुप तो जाएँ
पर दुश्मनों की सम्त से पत्थर कोई तो आए

हैं नौहागर हज़ार सना-ख़्वाँ हज़ार हैं
मेरे सिवाए तीर की ज़द पर कोई तो आए

लाखों जब आ के जा चुके क्या मिल गया मियाँ
अब भी ये सोचते हो पयम्बर कोई तो आए

शिकवा दुरुस्त 'क़ैसी' के पैहम सुकूत का
लेकिन इस अंजुमन में सुख़नवर कोई तो आए