EN اردو
दिल-खंडर में खड़े हुए हैं हम | शाही शायरी
dil-khanDar mein khaDe hue hain hum

ग़ज़ल

दिल-खंडर में खड़े हुए हैं हम

विकास शर्मा राज़

;

दिल-खंडर में खड़े हुए हैं हम
बाज़गश्त अपनी सुन रहे हैं हम

मुद्दतें हो गईं हिसाब किए
क्या पता कितने रह गए हैं हम

जब हमें साज़गार है ही नहीं
जिस्म को पहने क्यूँ हुए हैं हम

रफ़्ता रफ़्ता क़ुबूल होंगे उसे
रौशनी के लिए नए हैं हम

वहशतें लग गईं ठिकाने सब
दश्त को रास आ गए हैं हम

धुन तो आहिस्ता बज रही है 'राज़'
रक़्स कुछ तेज़ कर रहे हैं हम