दिल के ज़ख़्मों को हरा करते हैं
क्यूँ तुझे याद किया करते हैं
इन अंधेरों को हिक़ारत से न देख
ये चराग़ों का भला करते हैं
सारी बातें नहीं मानी जातीं
बच्चे तो ज़िद ही किया करते हैं
इतना सोचा है तिरे बारे में
अब तिरे हक़ में दुआ करते हैं
पारसा दुनिया में कोई भी नहीं
आदमी सारे ख़ता करते हैं
अब तो ग़ज़लों के हवाले से तिरा
ज़िक्र दुनिया से किया करते हैं

ग़ज़ल
दिल के ज़ख़्मों को हरा करते हैं
रईस सिद्दीक़ी