दिल के वरक़-ए-सादा पे कुछ रंग उभारें
ख़ूँ-गश्ता तमन्नाओं की तस्वीर उतारें
शायद कोई रौज़न कोई खिड़की निकल आए
सर अपना चलो वक़्त की दीवार से मारें
कब तक दिल-ए-दीवाना ये बे-वजह तआ'क़ुब
अब हाथ कहाँ आएँगी रम-कर्दा बहारें
बरहम हुई वो महफ़िल-ए-यारान-ए-ख़ुश-औक़ात
तन्हाई के लम्हात कहाँ जा के गुज़ारें
आँगन की उदासी को फ़ुज़ूँ कर गईं 'मख़मूर'
दीवार पे बैठी हुई चिड़ियों की क़तारें
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ग़ज़ल
दिल के वरक़-ए-सादा पे कुछ रंग उभारें
मख़मूर सईदी