दिल के सहरा में कोई आस का जुगनू भी नहीं
इतना रोया हूँ कि अब आँख में आँसू भी नहीं
इतनी बे-रहम न थी ज़ीस्त की दोपहर कभी
इन ख़राबों में कहीं साया-ए-गेसू भी नहीं
कास-ए-दर्द लिए फिरती है गुलशन की हवा
मेरे दामन में तिरे प्यार की ख़ुश्बू भी नहीं
छिन गया मेरी निगाहों से भी एहसास-ए-जमाल
तेरी तस्वीर में पहला सा वो जादू भी नहीं
मौज-दर-मौज तिरे ग़म की शफ़क़ खिलती है
मुझ को इस सिलसिला-ए-रंग पे क़ाबू भी नहीं
दिल वो कम-बख़्त कि धड़के ही चला जाता है
ये अलग बात कि तू ज़ीनत-ए-पहलू भी नहीं
ये अजब राहगुज़र है कि चटानें तो बहुत
और सहारे को तिरी याद के बाज़ू भी नहीं
हादिसा ये भी गुज़रता था मिरी जाँ हम पर
पैकर-ए-संग हैं दो, मैं भी नहीं तू भी नहीं
ग़ज़ल
दिल के सहरा में कोई आस का जुगनू भी नहीं
नूर बिजनौरी