दिल के कहने पर चल निकला
मैं भी कितना पागल निकला
आँसू निकले काजल निकला
रोने से कब कुछ हल निकला
पोंछ सका बस अपने आँसू
कितना छोटा आँचल निकला
चूर हुआ पर झूट न बोला
दर्पन मुझ सा अड़ियल निकला
दुश्मन के घर बूँदें बरसीं
मेरी छत से बादल निकला
क़त्ल हुई हर सूरत आख़िर
दिल मेरा इक मक़्तल निकला
बाहर से था ख़ार 'सदा' तू
अंदर फूल सा कोमल निकला
ग़ज़ल
दिल के कहने पर चल निकला
सदा अम्बालवी