दिल के अरमान दिल को छोड़ गए
आह मुँह इस जहाँ से मोड़ गए
वो उमंगें नहीं तबीअत में
क्या कहें जी को सदमे तोड़ गए
बादा-ए-बास के मुसलसल दौर
साग़र-ए-आरज़ू को फोड़ गए
मिट गए वो नज़्ज़ारा-हा-ए-जमील
लेकिन आँखों में अक्स छोड़ गए
हम थे इशरत की गहरी नींदें थीं
आए आलाम और झिंझोड़ गए
ग़ज़ल
दिल के अरमान दिल को छोड़ गए
अख़्तर अंसारी