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दिल के आँगन में तिरी याद का तारा चमका | शाही शायरी
dil ke aangan mein teri yaad ka tara chamka

ग़ज़ल

दिल के आँगन में तिरी याद का तारा चमका

अतीक़ अंज़र

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दिल के आँगन में तिरी याद का तारा चमका
मेरी बे-नूर सी आँखों में उजाला चमका

शाम के साथ ये दिल डूब रहा था लेकिन
यक-ब-यक झील के उस पार किनारा चमका

हर गली शहर की फूलों से सजी मेरे लिए
हर दरीचे में कोई चाँद सा चेहरा चमका

ग़म के पर्दे में ख़ुशी भी तो छिपी होती है
ख़ुश हुआ मैं जो मिरे पाँव में छाला चमका

कितने तारों ने लहू नज़्र किया है अपना
तब कहीं रात के सीने से सवेरा चमका

उस इमारत की चमक यूँ रही दो-पल 'अनज़र'
धूप में जैसे कोई बर्फ़ का टुकड़ा चमका