EN اردو
दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ | शाही शायरी
dil ka moamla nigah-e-ashna ke sath

ग़ज़ल

दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ

सय्यद आबिद अली आबिद

;

दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ
ऐसे है जैसे राब्ता-ए-गुल सबा के साथ

देखो तो पेच-ओ-ताब की सूरत कि मिल गई
शाम-ए-फ़िराक़ भी तिरी ज़ुल्फ़-ए-दोता के साथ

ये क्या बहार है कि दिखाई गई मुझे
शो'लों की आँच भी गुल-ए-रंगीं-क़बा के साथ

ये क्या तिलिस्म है कि सुनाया गया मुझे
साज़-ए-शिकस्त-ए-दिल तिरी आवाज़-ए-पा के साथ

ऐ दोस्तो यही है क़यामत की रोज़-ए-हश्र
हम भी जगाए जाएँगे ख़ल्क़-ए-ख़ुदा के साथ

गुलशन में आई पैरहन-ए-रंग बन गई
वो मौज-ए-ख़ूँ कि चेहरा-कुशा थी हिना के साथ

'आबिद' बयान-ए-जल्वा-ए-नागाह क्या करूँ
ख़ूबी अदा के साथ है शोख़ी हया के साथ