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दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना | शाही शायरी
dil ka kya hai wo to chahega musalsal milna

ग़ज़ल

दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना

परवीन शाकिर

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दिल का क्या है वो तो चाहेगा मुसलसल मिलना
वो सितमगर भी मगर सोचे किसी पल मिलना

वाँ नहीं वक़्त तो हम भी हैं अदीम-उल-फ़ुर्सत
उस से क्या मिलिए जो हर रोज़ कहे कल मिलना

इश्क़ की रह के मुसाफ़िर का मुक़द्दर मालूम
शहर की सोच में हो और उसे जंगल मिलना

उस का मिलना है अजब तरह का मिलना जैसे
दश्त-ए-उम्मीद में अंदेशे का बादल मिलना

दामन-ए-शब को अगर चाक भी कर लीं तो कहाँ
नूर में डूबा हुआ सुब्ह का आँचल मिलना