EN اردو
दिल का हर क़तरा-ए-ख़ूँ रंग-ए-हिना से माँगो | शाही शायरी
dil ka har qatra-e-KHun rang-e-hina se mango

ग़ज़ल

दिल का हर क़तरा-ए-ख़ूँ रंग-ए-हिना से माँगो

मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

;

दिल का हर क़तरा-ए-ख़ूँ रंग-ए-हिना से माँगो
ख़ूँ-बहा दोस्तो क़ातिल की अदा से माँगो

मत बनाओ यद-ए-बैज़ा को गदा का कश्कोल
वक़्त फ़िरऔन हो जब ज़र्ब-ए-असा से माँगो

जब बरसने से बढ़े तिश्ना-लबी का एहसास
यूरिश-ए-बर्क़ ही सावन की घटा से माँगो

कब तलक शाख़-ए-वफ़ा लाएगी ज़ख़्मों के गुलाब
कोई तासीर नई आब-ओ-हवा से माँगो

मोम की तरह पिघल जाएगा शब का फ़ौलाद
दस्त-ए-दाऊद की तौफ़ीक़ ख़ुदा से माँगो