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दिल का छाला फूटा होता | शाही शायरी
dil ka chhaala phuTa hota

ग़ज़ल

दिल का छाला फूटा होता

अज़ीज़ लखनवी

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दिल का छाला फूटा होता
काश ये तारा टूटा होता

शीशा-ए-दिल को यूँ न उठाओ
देखो हाथ से छूटा होता

चश्म-ए-हक़ीक़त-बीं इक होती
बाग़ का बूटा बूटा होता

ख़ैर हुई ऐ जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ
ज़ख़्म का टाँका टूटा होता

आज 'अज़ीज़' उस शोख़-नज़र ने
ख़ाना-ए-दिल को लूटा होता