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दिल जो उम्मीद-वार होता है | शाही शायरी
dil jo ummid-war hota hai

ग़ज़ल

दिल जो उम्मीद-वार होता है

बशीरुद्दीन राज़

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दिल जो उम्मीद-वार होता है
तीर-ए-ग़म का शिकार होता है

जब तिरा इंतिज़ार होता है
दिल मिरा बे-क़रार होता है

ये ही फ़स्ल-ए-जुनूँ की है तम्हीद
पैरहन तार तार होता है

आँख मिलते ही उस सितमगर से
तीर सीने के पार होता है

मुस्कुराहट लबों पे है उन के
दिल मिरा अश्क-बार होता है

उस का करते हैं ए'तिबार कि जो
क़ाबिल-ए-ए'तिबार होता है

उठ के पहलू से जा रहा है कोई
क्या ये पर्वरदिगार होता है

क्या बताऊँ तिरी जुदाई में
जो मिरा हाल-ए-ज़ार होता है

शाम-ए-ग़म इंतिज़ार में उन के
मौत का इंतिज़ार होता है

उन के जाने का नाम सुन कर 'राज़'
कुछ अजब हाल-ए-ज़ार होता है