दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ
ग़म से बे-इख़्तियार सा है कुछ
रख़्त-ए-हस्ती बदन पे ठीक नहीं
जामा-ए-मुस्तआर सा है कुछ
चश्म-ए-नर्गिस कहाँ वो चश्म कहाँ
नश्शा कैसा ख़ुमार सा है कुछ
नख़्ल-ए-उम्मीद में न फूल न फल
शजर-ए-बे-बहार सा है कुछ
साक़िया हिज्र में ये अब्र नहीं
आसमाँ पर ग़ुबार सा है कुछ
कल तो आफ़त थी दिल की बेताबी
आज भी बे-क़रार सा है कुछ
मुर्दा है दिल तो गोर है सीना
दाग़ शम-ए-मज़ार सा है कुछ
इस को दुनिया की उस को ख़ुल्द की हिर्स
रिंद है कुछ न पारसा है कुछ
पहले इस से था होशियार 'अमीर'
अब तो बे-इख़्तियार सा है कुछ
ग़ज़ल
दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ
अमीर मीनाई