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दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ | शाही शायरी
dil jo sine mein zar sa hai kuchh

ग़ज़ल

दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ

अमीर मीनाई

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दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ
ग़म से बे-इख़्तियार सा है कुछ

रख़्त-ए-हस्ती बदन पे ठीक नहीं
जामा-ए-मुस्तआर सा है कुछ

चश्म-ए-नर्गिस कहाँ वो चश्म कहाँ
नश्शा कैसा ख़ुमार सा है कुछ

नख़्ल-ए-उम्मीद में न फूल न फल
शजर-ए-बे-बहार सा है कुछ

साक़िया हिज्र में ये अब्र नहीं
आसमाँ पर ग़ुबार सा है कुछ

कल तो आफ़त थी दिल की बेताबी
आज भी बे-क़रार सा है कुछ

मुर्दा है दिल तो गोर है सीना
दाग़ शम-ए-मज़ार सा है कुछ

इस को दुनिया की उस को ख़ुल्द की हिर्स
रिंद है कुछ न पारसा है कुछ

पहले इस से था होशियार 'अमीर'
अब तो बे-इख़्तियार सा है कुछ